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Showing posts from August, 2024

वर्ण

गानें की क्रिया को वर्ण कहते है । वर्ण चार  प्रकार के होते हैं जिन्हें क्रमश:.... 1.. स्थाई 2..आरोही  3..अवरोही 4..और संचारी वर्ण  स्थाई वर्ण....एक ही स्वर बार -बार ठहर-ठहर कर बोलने या गानें की क्रिया को स्थाई वर्ण कहते हैं जैसे ...सा सा सा सा ,रे रे रे रे ,ग ग ग ग  । स्थाई का अर्थ है ...  'ठहरा हुआ'  । आरोही वर्ण..... नीचे के स्वर से ऊँचे स्वर तक चढनें या गानें की क्रिया को आरोही वर्ण कहते हैं जैसे ..सा ,रे ,ग,म,प,ध,नी ..। अवरोही वर्ण...ऊँचे स्वर  से नीचे स्वरों पर आने या गानें की क्रिया को अवरोही वर्ण कहते हैं  जैसे सां ,नी ,ध,प,म,ग,रे ,सा ..। संचारी वर्ण.....स्थाई, आरोही और अवरोही .इन तीनों के संयोग से जब स्वरों की उलट पलट की जाती है ,अर्थात जब तीनों वर्ण मिलकर अपना रूप दिखाते हैं तब इस क्रिया को संचारी वर्ण कहते हैं ।   शुभा मेहता  29th,Aug ,2024

नाद -स्थान और सप्तक

नाद अर्थात आवाज की ऊँचाई और नीचाई के आधार पर उसके मंद्र ,मध्य और तार ,ये तीन भेद मानें जाते हैं । इनको नाद स्थान कहते हैं व इन तीन नाद स्थानों में एक-एक सप्तक मानकर क्रमश: मंद्र सप्तक ,मध्य सप्तक और तार सप्तक कहलाते हैं ।  सप्तक...... सप्तक का अर्थ है .'.सात ' ।    एक स्थान पर सात शुद्ध स्वर निवास करते हैं अत:इसका नाम सप्तक हुआ।   ध्वनि की साधारण ऊँचाई से जब मनुष्य बात करता है उसे मध्य सप्तक कहते हैं किंतु जब गानें में आवाज नीचे ले जाने की आवश्यकता होती है तो वहाँ मंद्र सप्तक के स्वर काम देते हैं ,और जब मध्य सप्तक से भी ऊँचा गानें की आवश्यकता पडती है तब तार सप्तक के स्वर प्रयुक्त होते हैं । मंद्र सप्तक......जिस सप्तक के स्वरों की आवाज सबसे नीची हो अथवा मध्य सप्तक से आधी हो उसे मंद्र सप्तक कहते हैं । पहचान के लिए इन स्वरों के नीचे (.)का चिन्ह लगाया जाता है । मध्य सप्तक...... मंद्र सप्तक से दुगुनी आवाज होनें पर मध्य सप्तक कहलाता है । इसके स्वरों पर कोई चिन्ह नहीं होता । तार सप्तक......मध्य सप्तक से दुगुनी आवाज होनें पर तार सप्तक कहलाता है । पहचान के लिए  इन स...

दक्षिणी और उत्तर भारतीय संगीत पद्धतियाँ

भारत  में दो संगीत पद्धतियाँ प्रचलित हैं..... कर्णाटकी संगीत पद्धति और हिन्दुस्तानी (उत्तरी ) संगीत पद्धति । इन दोनों पद्धतियों के मूल सिद्धांतों में विशेष अंतर नहीं है ।  इन दोनों पद्धतियों में जो समानता और भिन्नता है ,वो इस प्रकार है..... हिन्दुस्तानी संगीत..... 1.. हिन्दुस्तानी संगीत  में केवल गीत की बंदिश निबद्ध रूप में गाई  जाती है और अन्य  संपूर्ण विस्तार अनिबद्ध रूप से किया जाता है । 2...हिन्दुस्तानी संगीत स्वर प्रधान होता है । 3... गीत गाते समय ही आलाप ,बोल तान ,तान इत्यादि प्रकारों को प्रयोग में लाया जाता है । 4... विलंबित ख्याल की लय अति विलंबित होती है । 5...हिन्दुस्तानी संगीत का स्वरूप अनिबद्ध होनें के कारण तबले  पर ताल के ठेके का का बजते रहना अत्यन्त जरूरी होता है । 6....ध्रुपद, धमार और ख्याल, भजन या ठुमरी गायन का प्रदर्शन किया जाता है । कर्णाटकी संगीत...... 1....कर्णाटकी  संगीत मुख्यत: निबद्ध रूप से गाया जाता है 2.... कर्णाटकी संगीत लय प्रधान होता है । 3...गीत गाते समय केवल संगतियाँ, नेरावल और सरगम का प्रयोग होता है । 4...सभी गीतों की लय ...

ध्वनि विज्ञान...नाद

नकारं प्राणनामानं  दकारमनलं  विदु:। जात:प्राणाग्निसंयोगात्तेन नादोभिधीयते।।  अर्थात 'नकार 'प्राणवाचक तथा 'दकार' अग्निवाचकहै,अत: जो वायु और अग्नि के योग से उत्पन्न होता है ,उसी को नाद कहते हैं ।  नाद के दो प्रकार मानें जाते हैं.....'आहत 'और' अनाहत' ।  ये दोनों  देह में प्रकट होते हैं ।।  अनाहत  नाद ....जो नाद केवल अनुभव से जाना जाता है और जिसके उत्पन्न होनें का कोई खास कारण न हो यानि जो बिना संघर्ष के स्वयंभू रूप से उत्पन्न होता है ,उसे आनाहत नाद कहते हैं ,जैसे दोनों कान बंद करके घन्न घन्न की आवाज सुनाई देती है ।इसके बाद नादोपासना की विधि से गहरे ध्यान की अवस्था में पहुँचने पर सूक्ष्म नाद सुनाई पडनें लगता है ,इसी अनाहत नाद की उपासना हमारे प्राचीन ऋषि मुनि करते थे यह नाद  मुक्तिदायक है पर संगीतोपयोगी नहीं है अर्थात संगीत से इस नाद  का कोई संबंध नहीं है । आहत नाद....जो कानों को सुनाई देता है उसे आहत नाद कहते हैं ।आहत नाद  ही संगीतोपयोगी है ।   सामान्य ध्वनि को दो भागों में बाँटा  गया है ..... 1...सांगीतिक  2... असांगीतिक...

श्रुति और स्वर तुलना

जो सुनी जा सकती है ,वह 'श्रुति'कहलातीहै । स्वर और श्रुति में भेद इतना ही है ,जितना सर्प तथा उसकी कुंडली में । अर्थात इन बाईस श्रुतियों में से जो श्रुतियाँ किसी राग विशेष में प्रयुक्त होती हैं ,वे स्वर  कहलाती हैं । जब गायन ,वादन में श्रुति का प्रयोग नहीं होता तो वो कुंडली की तरह सोई हुई  रहती हैंऔर जब इसका प्रयोग किसी राग विशेष में होता है,तो वह सर्प की तरह क्रियाशील हो जाती हैं ।इस आधार पर श्रुति को कुंडली और स्वर को सर्प की उपमा दी गई है । कुछ विद्वानों के अनुसार कण,स्पर्श, मींड,सूत से श्रुति कहलाती है तथा उसपर ठहरने से वही 'स्वर'हो जाता है ।   अर्थात टंकोर मात्र से जो  क्षणिक आवाज उत्पन्न होती   वह श्रुति है और तुरंत ही आवाज स्थिर हो गई तो वह 'स्वर' है ।   इस आधार पर हम श्रुति और स्वर में निम्न भेद पाते हैं....   1- श्रुतियाँ बाईस होती हैंऔर स्वर  सात ।  2-श्रुतियों का परस्पर अंतराल स्वरों की अपेक्षा कम होता है  3-कण,मींड और सूत द्वारा जब तक किसी सुरीली ध्वनि को व्यक्त किया जाता है,तब तक वो श्रुति है और जहाँ उसपर  ठहराव हुआ ...

स्वर और श्रुतियाँ

भारतीय संगीतज्ञों नें एक स्वर से ,उससे दोगुनी ध्वनि तक के क्षेत्र  में ऐसे संगीतोपयोगी नाद बाईस मानें हैं ,जिन्हें श्रुतियाँ कहा गया है ।ध्वनि की प्रारंभिक अवस्था श्रुति और उसका गुंजित स्वरूप स्वर  कहलाता है ।   वह आवाज  ,जो गीत में प्रयुक्त की जा सके और एक -दूसरे से अलग तथा स्पष्ट पहचानी जा सके ,'श्रुति 'कहलाती है ।   और अधिक  स्पष्ट समझने के लिए मान लीजिए हमनें पहले एक नाद लिया जिसकी आंदोलन संख्या 100कंपन प्रति सेकेंड है ।फिर हमनें दूसरा नाद  लिया ,जिसकी आंदोलन संख्या 101कंपन प्रति सेकेंड है । वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तो ये दोनों भिन्न नाद हैं परन्तु इनकी कंपन्न संख्याओं  में इतना कम अंतर है कि किसी कुशल संगीतज्ञ के कान भी इन दोनों नादों को अलग अलग शायद ही पहचान पाएंगे ।यदि हम दूसरे नाद में क्रमश:एक-एक कंपन्न बढाते जाएं तो एक स्थिति ऐसी आएगी कि ये दोनों नाद  अलग अलग पहचानें जा सकेगें । इसी आधार  पर विद्वानों नें श्रुति की परिभाषा यह दी कि ...जो नाद एक-दूसरे से पृथक तथा स्पष्ट पहचाना जा सके उसे 'श्रुति कहते हैं ।    हृदय स्थान म...

संगीत का स्वर पक्ष

गीतं ,वाद्यं तथा नृत्यं  त्रयं  संगीतमुच्यते। ।                                   --   संगीत  रत्नाकर                          गीत ,वाद्य और नृत्य ये तीनों मिलकर  संगीत  कहलाते  हैं । वास्तव में ये तीनों कलाएं एक -दूसरे से स्वतंत्र  हैं ,किंतु स्वतंत्र होते हुए  भी गान के अधीन वादन और वादन के अधीन नृत्य है ।   ' संगीत ' शब्द गीत शब्द  में 'सम 'उपसर्ग लगाकर बना है।  सम_ यानी सहित और गीत यानी गान । गान के सहित अर्थात अंगभूत क्रियाओं व वादन के साथ किया हुआ  कार्य 'संगीत  'कहलाता है ।   स्वर क्या है? ..     ध्वनियों में हम प्रायः दो भेद रखते हैं,जिनमें एक को स्वर और दूसरे को कोलाहल कहते हैं ।    जब कोई  ध्वनि नियमित  और आवर्त  कंपन से मिलकर उत्पन्न होती है ,तो उसे स्वर कहते हैं । इसके विपरीत जब कंपन अनियमित हों तो उस ध्वनि को...

भारतीय संगीत का इतिहास

संगीत कला की उत्पत्ति कब और कैसे हुई.....इस विषय पर विभिन्न  विद्वानों के अलग - अलग मत हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार  हैं :-- 1...संगीत की उत्पति आरंभ में वेदों के निर्माता ब्रह्मा जी द्वारा हुई । उन्होनें यह कला शिव जी को दी और शिव जी नें माता सरस्वती जी को । सरस्वती जी को 'वीणा पुस्तक धारिणी कह संगीत और साहित्य  की अधिष्ठात्री माना गया है । सरस्वती जी से यह ज्ञान नारद जी को प्राप्त हुआ और नारद जी नें स्वर्ग के गंधर्व, किन्नर तथा अप्सराओं को संगीत  शिक्षा दी ।  ब्रह्मा जी  नें जिस संगीत  को शोधकर निकाला वो मुक्ति दायक है ,वह मार्गी संगीत  कहलाता है ।  .  वहाँ से ही भरत ,नारद और हनुमान जी संगीत कला में पारंगत  होकर इस कला के प्रचारार्थ  पृथ्वी पर अवतीर्ण  हुए । 2.....दूसरे मत के अनुसार  नारद  नें अनेक वर्षों योग साधना की तब शिव जी नें प्रसन्न  होकर उन्हें संगीत कला प्रदान की । 3.....संगीत दर्पण के लेखक दामोदर पंडित के मतानुसार संगीत  की उत्पत्ति ब्रह्मा जी से हुई।  आगे चलकर इन्होनें ही सात स्वरों की ...