स्वर और श्रुतियाँ

भारतीय संगीतज्ञों नें एक स्वर से ,उससे दोगुनी ध्वनि तक के क्षेत्र  में ऐसे संगीतोपयोगी नाद बाईस मानें हैं ,जिन्हें श्रुतियाँ कहा गया है ।ध्वनि की प्रारंभिक अवस्था श्रुति और उसका गुंजित स्वरूप स्वर  कहलाता है ।
  वह आवाज  ,जो गीत में प्रयुक्त की जा सके और एक -दूसरे से अलग तथा स्पष्ट पहचानी जा सके ,'श्रुति 'कहलाती है ।
  और अधिक  स्पष्ट समझने के लिए मान लीजिए हमनें पहले एक नाद लिया जिसकी आंदोलन संख्या 100कंपन प्रति सेकेंड है ।फिर हमनें दूसरा नाद  लिया ,जिसकी आंदोलन संख्या 101कंपन प्रति सेकेंड है । वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तो ये दोनों भिन्न नाद हैं परन्तु इनकी कंपन्न संख्याओं  में इतना कम अंतर है कि किसी कुशल संगीतज्ञ के कान भी इन दोनों नादों को अलग अलग शायद ही पहचान पाएंगे ।यदि हम दूसरे नाद में क्रमश:एक-एक कंपन्न बढाते जाएं तो एक स्थिति ऐसी आएगी कि ये दोनों नाद  अलग अलग पहचानें जा सकेगें । इसी आधार  पर विद्वानों नें श्रुति की परिभाषा यह दी कि ...जो नाद एक-दूसरे से पृथक तथा स्पष्ट पहचाना जा सके उसे 'श्रुति कहते हैं ।
   हृदय स्थान में बाईस नाडियाँ हैं ।उनके सभी नाद  स्पष्ट  सुने जा सकते हैं ,अत: उन्हीं को श्रुति कहते हैं ।
 इन बाईस नादों  को गानें में सर्वसाधारण  को कठिनाई होती है इसीलिए इन बाईस श्रुतियों में से बारह स्वर चुनकर गान में प्रयुक्त  किया जानें लगा ।
  शुभा मेहता 
  5th Aug ,2024

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