दक्षिणी और उत्तर भारतीय संगीत पद्धतियाँ

भारत  में दो संगीत पद्धतियाँ प्रचलित हैं.....
कर्णाटकी संगीत पद्धति और हिन्दुस्तानी (उत्तरी ) संगीत पद्धति । इन दोनों पद्धतियों के मूल सिद्धांतों में विशेष अंतर नहीं है ।
 इन दोनों पद्धतियों में जो समानता और भिन्नता है ,वो इस प्रकार है.....
हिन्दुस्तानी संगीत.....
1.. हिन्दुस्तानी संगीत  में केवल गीत की बंदिश निबद्ध रूप में गाई  जाती है और अन्य  संपूर्ण विस्तार अनिबद्ध रूप से किया जाता है ।
2...हिन्दुस्तानी संगीत स्वर प्रधान होता है ।
3... गीत गाते समय ही आलाप ,बोल तान ,तान इत्यादि प्रकारों को प्रयोग में लाया जाता है ।
4... विलंबित ख्याल की लय अति विलंबित होती है ।
5...हिन्दुस्तानी संगीत का स्वरूप अनिबद्ध होनें के कारण तबले  पर ताल के ठेके का का बजते रहना अत्यन्त जरूरी होता है ।
6....ध्रुपद, धमार और ख्याल, भजन या ठुमरी गायन का प्रदर्शन किया जाता है ।
कर्णाटकी संगीत......
1....कर्णाटकी  संगीत मुख्यत: निबद्ध रूप से गाया जाता है 2.... कर्णाटकी संगीत लय प्रधान होता है ।
3...गीत गाते समय केवल संगतियाँ, नेरावल और सरगम का प्रयोग होता है ।
4...सभी गीतों की लय मध्यलय में होती है ।
5..इसका स्वरूप निबद्ध होनें के कारण मृदंगम पर इसकी ताल का उपयोग संगीत का सौंदर्य बढाने की दृष्टि से किया जाता है ।
6......रागम ,तालम, पल्लवी तथा कीर्तन का प्रदर्शन किया जाता ।
 दोनों ही पद्धतियों में शुद्ध और विकृत मिलाकर बारह स्वर स्थान हैं ।
दोनों ही पद्धतियों में बारह स्वरों से ठाठ या मेल पद्धति के आधार पर रागों की उत्पत्ति होकर संगीत  में उनका प्रयोग किया जाता है ।
दोनों ही पद्धतियों में आलाप -गान स्वीकार किया गया है ।
ठाठ राग का सिद्धांत दोनों में ही स्वीकार किया गया है ।
दोनों पद्धतियों में यद्यपि स्वर स्थान बारह  मानें गए हैं, किंतु दोनों के स्वर तथा नामों में अंतर है ।
उत्तरी संगीत पद्धति में केवल दस थाटों से रागों की उत्पत्ति हुई है,किंतु दक्षिणी संगीत पद्धति में बहत्तर जनक थाटों का प्रमाण मिलता है ।
दोनों पद्धतियों में ताल भिन्न-भिन्न होते हैं ।
दोनों पद्धतियों में स्वरोच्चारण तथा आवाज निकालने की शैलियाँ भिन्न-भिन्न हैं ।
दोनों पद्धतियों के अपनें अपनें स्वतंत्र राग हैं ।कुछ ही राग दोनों पद्धतियों के समान हैं ।

शुभा मेहता 
13th ,Aug ,2024

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