संगीत और जीवन

सृष्टी के स्वर्णिम विहान से लेकर प्रलय की काली संध्या तक संगीत का अस्तित्व स्वीकार करना ही पडता है ।जीवन ग्रंथ के पन्नों को कहीं से भी पलटिए ,कोई भी अध्याय तो ऐसा नहीं ,जिसे संगीत शून्य कह दिया जाए । मानव नें जन्म लेते ही गीत सुने और मृत्यु होनें पर भी राम नाम की ध्वनी के साथ ही स्थूल शरीर शून्य हो जाता है ।
  हमारा शरीर जल ,वायु ,अग्नि,आकाश और पृथ्वी इन पाँच  तत्वों से बना है और यही तत्व जीवन के आधार मानें गए हैं । जड और चेतन की सृष्टी का अस्तित्व इन्ही पर है ।
 वैज्ञानिकों नें भी सिद्ध कर दिया है कि इन पाँच तत्वों में संगीत प्रचुर मात्रा में विद्यमान है ।इससे यह कहा जा सकता है कि प्राणी मात्र की उत्पत्ति संगीतमय वातावरण एवं संगीतमय तत्वों से परिपूर्ण होती है व
स्वर आत्मा का नाद है और आत्मा परमात्मा का स्वरूप ।
 भावुकता विहीन ,पाषाण हृदय ही क्यों न हो ,किंतु संगीत से विमुख वो भी नहीं हो सकता ।
  संगीत में जादू जैसा असर होता है । पावस की संध्याओं में नन्हीं-नन्हीं बूँदों की रिमझिम सुनते ही कोयल कूक उठती है ,पपीहे गा उठते हैं,मोर नाचने लगते हैं । लहलहाते खेतों को देख कृषक आनंद विभोर हो जाता है और अनायास ही गुनगुनाने लगता है ।यही वह समय होता है जब प्रकृति के कण-कण में संगीत की सजीवता दिखाई पडती है हरियाली तीजों का त्यौहार इसी समय आता है जब गाँव -गाँव ,गली -गली में झूले के गीत गुंजारित होते हैं ।
 जीवन के किसी भी मोड़ पर रुक कर देख लीजिए ,सभी जगह आपको संगीत मिलेगा । सुख में ,दुख में ,योग -वियोग में ,रुदन -हास में ,जीवन की प्रत्येक अवस्था में संगीत की कडी अवश्य जुडी होती है ।
   विभिन्न देशों में संगीत के प्रकार चाहे अलग हो ,पर उनके गुण समान ही होते हैं। संगीत के परमाणुओं में मानव की वृत्तियों को प्रशस्त करनें के साथ आत्मिक शक्ति को जागृत करनें की भी शक्ति होती है । संगीत एक कठिन तपस्या है ।

शुभा मेहता 
  27th Dec ,2025




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