ठेका
तबला या मृदंग के लिए प्राचीन शास्त्रकारों नें भिन्न-भिन्न बोल वैसी ही भाषा में बना दिए, जैसी उन ताल वाद्यों से प्रकट होती है । उन बोलों को जब हम तबला या मृदंग पर बजाते हैं,तब उसे ठेका कहते हैं ।ठेका एक ही आवृति का होता है,जिसमें मात्राएं निश्चित होती हैं ।
उन्हीं निश्चित मात्राओं के अनुसार गानें -बजानें का नाप होता है ;जैसे कहरवा ताल में आठ मात्राएं होती हैंऔर इसके दो भाग हैं ।प्रत्येक भाग में चार-चार मात्राएं होती हैं । पहली मात्रा पर सम और पाँचवी पर खाली है इसे इस प्रकार से लिखा जाएगा .....
मात्राएं- 1 2 3 4 : 5 6 7 8
ठेका-- धा गे न ति : न क धिं ना
ताल चिन्ह × : 0
यह कहरवा ताल का ठेका हुआ।
दुगुन --- किसी ठेके को जब दुगुनी लय में बजाया जाए, यानि जितने समय में कोई ठेका एक बार बजाया गया था उतने ही समय में उसे दो बार कहा जाए या बजाया जाए, तो उसे दुगुन कहेंगे ।
इसी प्रकार किसी गीत के स्थाई या अंतरे को जितने समय में एक बार गाया जाए, ठीक उतने ही समय में उसे दो बार गा दिया जाए तो वही दुगुन कहलाएगी ।
शुभा मेहता
8th May ,2025
मुझे हमेशा अच्छा लगता है कि शास्त्रकारों ने कैसे वाद्यों की आवाज़ को बोलों में ढाला, मानो भाषा और संगीत एक-दूसरे से गले मिले हों। दुगुन वाला हिस्सा भी मजेदार है—एक ही समय में दो बार कहना या बजाना, सुनने में जितना आसान लगता है, करने में उतना ही चुनौतीपूर्ण होता है।
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद
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