स्वर और समय की दृष्टि से रागों के तीन वर्ग
उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में रागों के गानें -बजानें के बारे में समय -सिद्धांत प्राचीन काल से ही चला आ रहा है । यद्यपि प्राचीन रागों में एवं अर्वाचीन रागों में समय सिद्धांत पर कुछ मतभेद है । हमारे प्राचीन संगीत पंडितों नें रागों को उनके ठीक समय पर गायन -वादन का सिद्धांत अपने ग्रंथों में स्वीकार किया है ।
स्वर और समय के अनुसार उत्तर भारतीय रागों के तीन वर्ग मानकर कोमल -तीव्र स्वरों के हिसाब से उनका विभाजन किया गया है ...
1... संघिप्रकाश राग अर्थात कोमल रे और ध वाले राग
2... शुद्ध रे और ध वाले राग
3...कोमल ग और नि वाले राग
1 ..... संघिप्रकाश राग.......इस वर्ग के रागों में कोमल रे और कोमल ध वाले रागों को रखा जाता है ,साथ ही इन रागों में ग शुद्ध होना आवश्यक है ।
दिन और रात की संधि अर्थात मेल होनें के समय को संधिकाल कहते हैं प्रातः सूर्योदय से कुछ पहले और शाम को सूर्यास्त से पहले का कुछ समय ऐसा होता है जिसे न तो दिन कह सकते हैं न ही रात इसी समय को संघिप्रकाश की बेला कहा जाता है । इस बेला में जो राग गाए -बजाए जाते हैं उन्हे संघिप्रकाश राग कहते हैं जैसे भैरव, कालिंगडा, भैरवी ,पूर्वी ,मारवा आदि ।
संघिप्रकाश के भी दो भाग माने गए हैं प्रातःकालीन संघिप्रकाश राग और सायंकालीन संघिप्रकाश राग ।
संघिप्रकाश रागों में मध्यम स्वर का महत्व बहुत अधिक होता है । प्रातःकालीन संघिप्रकाश रागों में मध्यम शुद्ध होगा और सायंकालीन रागों में तीव्र मध्यम होगा । इस नियम का अपवाद भी हो सकता है ।
2...शुद्ध रे -ध वाले राग.....शुद्ध रे -ध वाले रागों को गाने -बजानें का समय संघिप्रकाश काल के बाद आता है ।क्योंकि संघिप्रकाश काल दिन में दो बार आता है अत: इस वर्ग के रागों के गानें का समय भी चौबीस घंटों में दो बार आता है ।इसमें कल्याण, बिलावल और खमाज थाट के राग गाए-बजाए जाते हैं ।
प्रात:कालीन संघिप्रकाश रागों के बाद गाए-बजाए जानें वाले रागों में दिन चढ़नें के साथ ही शुद्ध रे और शुद्ध ध की प्रधानता बढ जाती है । इस प्रकार प्रात:सात बजे से दस बजे तक और शाम को सात बजे से दस बजे तक दूसरे वर्ग के अर्थात रे -ध शुद्ध वाले राग गाए बजाए जाते हैं ।इस वर्ग में ग का शुद्ध होना आवश्यक है ।
3...कोमल ग नि वाले राग.....इस वर्ग के रागों को गानें का समय शुद्ध रे -ध वाले रागों के बाद आता है ,अर्थात कोमल ग ,नि वाले राग दिन में दस बजे से चार बजे तक और रात में दस बजे से चार बजे तक गाए बजाए जाते हैं। इस वर्ग के रागों में' ग' कोमल जरूर होता है ।
शुभा मेहता
5th January, 2025
सच में, रागों का समय और उनके स्वर कितने महत्वपूर्ण हैं, ये समझना दिलचस्प है। मुझे खास तौर पर संघिप्रकाश राग का विचार पसंद आया—सुबह-सुबह और शाम को अलग मध्यम स्वर के साथ राग का अनुभव करना सच में दिल को छू जाता होगा।
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