अलंकार

कुछ नियमित वर्ण समुदायों को अलंकार कहते हैं ।
अलंकार का अर्थ है ..'.आभूषण ' या' गहना ' । जिस प्रकार 
आभूषण शारीरिक शोभा बढाते हैं ,उसी प्रकार अलंकारों के द्वारा गायन की शोभा बढ जाती है ।
 जैसे चन्द्र के बिना रात ,जल के बिना नदी ,फूलों के बिना लता तथा आभूषणों के बिना स्त्री शोभा नहीं पाती,उसी प्रकार अलंकार बिना गीत भी शोभा को प्राप्त नहीं होते ।
 अलंकार  को पलटा भी कहते हैं । गायन  सीखने से पहले विद्यार्थियों को अलंकार सिखाए  जाते हैं क्योंकि इसके बिना न तो अच्छा स्वर ज्ञान ही होता है और न ही आगे संगीत कला में सफलता ही मिलती है ।
 अलंकारों से राग विस्तार  में भी काफी सहायता मिलती है । 
 अलंकारों के द्वारा राग  की सजावट करके उसमें चार -चाँद लगाए जा सकते हैं ।
तानें इत्यादि भी अलंकारों के आधार पर ही बनती हैं ।
अलंकार वर्ण समुदायों में ही होते हैं । उदाहरण के लिए 'सा रे ग सा ' इसमें आरोही -अवरोही दोनों वर्ण  आ गए ।
यह एक सीढी मान लीजिए अब इसी आधार पर आगे बढिए और पिछला स्वर छोड़कर आगे का स्वर बढाते जाइए..रे ग म रे ,यह दूसरी सीढी हुई ,ग म प ग यह तीसरी सीढी हुई ।
इस प्रकार बहुत से अलंकार तैयार किए जा सकते हैं ।
शुद्ध स्वरों के अलावा कोमल -तीव्र स्वरों के अलंकार भी तैयार किए जा सकते हैं किन्तु उनमें यह ध्यान रखना आवश्यक होता है कि जिस राग में जो स्वर लगते हैं ,वे ही स्वर उस राग के अलंकारों में लिए  जाएं ।
  शुभा मेहता 
  3rd September, 2024

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