ध्वनि विज्ञान...नाद

नकारं प्राणनामानं  दकारमनलं  विदु:।
जात:प्राणाग्निसंयोगात्तेन नादोभिधीयते।।
 अर्थात 'नकार 'प्राणवाचक तथा 'दकार' अग्निवाचकहै,अत: जो वायु और अग्नि के योग से उत्पन्न होता है ,उसी को नाद कहते हैं । 
नाद के दो प्रकार मानें जाते हैं.....'आहत 'और' अनाहत' ।
 ये दोनों  देह में प्रकट होते हैं ।।
 अनाहत  नाद ....जो नाद केवल अनुभव से जाना जाता है और जिसके उत्पन्न होनें का कोई खास कारण न हो यानि जो बिना संघर्ष के स्वयंभू रूप से उत्पन्न होता है ,उसे आनाहत नाद कहते हैं ,जैसे दोनों कान बंद करके घन्न घन्न की आवाज सुनाई देती है ।इसके बाद नादोपासना की विधि से गहरे ध्यान की अवस्था में पहुँचने पर सूक्ष्म नाद सुनाई पडनें लगता है ,इसी अनाहत नाद की उपासना हमारे प्राचीन ऋषि मुनि करते थे यह नाद  मुक्तिदायक है पर संगीतोपयोगी नहीं है अर्थात संगीत से इस नाद  का कोई संबंध नहीं है ।
आहत नाद....जो कानों को सुनाई देता है उसे आहत नाद कहते हैं ।आहत नाद  ही संगीतोपयोगी है ।
  सामान्य ध्वनि को दो भागों में बाँटा  गया है .....
1...सांगीतिक 
2... असांगीतिक
   इन्हें सुरीली और बेसुरी ध्वनियाँ भी कह सकते हैं। जब ध्वनि में अर्थात उसके कंपनों  में नियमितता तथा व्यवस्था आ जाती है तो ध्वनि मृदुल  होकर कानों को प्रिय लगने लगती है इसी ध्वनि को स्वर कहते हैं ।जिसका उपयोग संगीत  के क्षेत्र  में किया जाता है ।इसी को सांगीतिक ध्वनि कहा जाता है ।
शुभा मेहता 
9th Aug ,2024

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

ताल में सम ,खाली और भरी का स्थान

लय के प्रकार

ताल -मात्रा -लय विवरण