श्रुति और स्वर तुलना

जो सुनी जा सकती है ,वह 'श्रुति'कहलातीहै । स्वर और श्रुति में भेद इतना ही है ,जितना सर्प तथा उसकी कुंडली में ।
अर्थात इन बाईस श्रुतियों में से जो श्रुतियाँ किसी राग विशेष में प्रयुक्त होती हैं ,वे स्वर  कहलाती हैं । जब गायन ,वादन में श्रुति का प्रयोग नहीं होता तो वो कुंडली की तरह सोई हुई  रहती हैंऔर जब इसका प्रयोग किसी राग विशेष में होता है,तो वह सर्प की तरह क्रियाशील हो जाती हैं ।इस आधार पर श्रुति को कुंडली और स्वर को सर्प की उपमा दी गई है ।
कुछ विद्वानों के अनुसार कण,स्पर्श, मींड,सूत से श्रुति कहलाती है तथा उसपर ठहरने से वही 'स्वर'हो जाता है ।
  अर्थात टंकोर मात्र से जो  क्षणिक आवाज उत्पन्न होती   वह श्रुति है और तुरंत ही आवाज स्थिर हो गई तो वह 'स्वर' है ।
  इस आधार पर हम श्रुति और स्वर में निम्न भेद पाते हैं....
  1- श्रुतियाँ बाईस होती हैंऔर स्वर  सात ।
 2-श्रुतियों का परस्पर अंतराल स्वरों की अपेक्षा कम होता है 
3-कण,मींड और सूत द्वारा जब तक किसी सुरीली ध्वनि को व्यक्त किया जाता है,तब तक वो श्रुति है और जहाँ उसपर  ठहराव हुआ वह स्वर कहलाएगा ।

शुभा मेहता 
6th Aug ,2024


Comments

  1. वाह! सखी बेहतरीन जानकारी आपने बहुत अच्छी प्रस्तुति दी है

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सखी

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  2. वाह बेहतरीन.. श्रुति और स्वर का विवेचन...

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद रितु जी

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