नाद -स्थान और सप्तक

नाद अर्थात आवाज की ऊँचाई और नीचाई के आधार पर उसके मंद्र ,मध्य और तार ,ये तीन भेद मानें जाते हैं । इनको नाद स्थान कहते हैं व इन तीन नाद स्थानों में एक-एक सप्तक मानकर क्रमश: मंद्र सप्तक ,मध्य सप्तक और तार सप्तक कहलाते हैं ।
 सप्तक...... सप्तक का अर्थ है .'.सात ' । 
  एक स्थान पर सात शुद्ध स्वर निवास करते हैं अत:इसका नाम सप्तक हुआ। 
 ध्वनि की साधारण ऊँचाई से जब मनुष्य बात करता है उसे मध्य सप्तक कहते हैं किंतु जब गानें में आवाज नीचे ले जाने की आवश्यकता होती है तो वहाँ मंद्र सप्तक के स्वर काम देते हैं ,और जब मध्य सप्तक से भी ऊँचा गानें की आवश्यकता पडती है तब तार सप्तक के स्वर प्रयुक्त होते हैं ।
मंद्र सप्तक......जिस सप्तक के स्वरों की आवाज सबसे नीची हो अथवा मध्य सप्तक से आधी हो उसे मंद्र सप्तक कहते हैं । पहचान के लिए इन स्वरों के नीचे (.)का चिन्ह लगाया जाता है ।
मध्य सप्तक...... मंद्र सप्तक से दुगुनी आवाज होनें पर मध्य सप्तक कहलाता है । इसके स्वरों पर कोई चिन्ह नहीं होता ।
तार सप्तक......मध्य सप्तक से दुगुनी आवाज होनें पर तार सप्तक कहलाता है । पहचान के लिए  इन स्वरों के ऊपर (.)
का चिन्ह लगाया जाता है ।
  यद्यपि एक सप्तक में सात स्वर कहे गए हैं किंतु कोमल -तीव्र मिलाकर एक सप्तक के स्वरों की संख्या बारह हो जाती है ।
 शुभा मेहता 
22th Aug ,2024

Comments

  1. तार सप्तक ने मुझे प्रयोगवादी कवि अज्ञेय द्वारा संपादित तार सप्तक की याद दिला दी जरुर अज्ञेय जी ने पत्रिका के नामकरण में संगीत में प्रयुक्त इन नाद - स्थान से उच्चारित इन आवाजों को ध्यान में रखा होगा ।

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