ताल में सम ,खाली और भरी का स्थान
सम ......यह ताल का वह स्थान है ,जहाँ से गाना -बजाना शुरू होता है । गायक -वादक ऐसे स्थान पर संगति करते हुए जब मिलते हैं ,तो एक विशेष प्रकार का आनंद आता है और श्रोताओ के मुँह से अनायास ही वाह निकल जाता है । ' सम ' पर गायक -वादक विशेष जोर देकर उसे प्रदर्शित करते हैं । प्राय: सम पर ही गाने -बजाने की समाप्ति भी होती है । सम को न्यास भी कहते हैं । खाली ...प्रत्येक ताल के कुछ हिस्से होते हैं ,जिन्हे भाग भी कहते हैं । इन भागों पर जहाँ हाथ से तालियाँ बजाई जाती है,वो भरी कहलाती है और जिन भागों पर ताली बंद रहती है ,वे खाली कहलाती है । ताल में खाली भाग इसलिए रखने पडते हैं कि इससे सम आनें का अंदाज ठीक लग जाता है। खाली के स्थान का संकेत हाथ फेंककर किया जाता है । भागेंगे स्टर्लिंग पद्धति में इस स्थान को सिफर चिन्ह (0) द्वारा दिखाते हैं । भरी .....ताल के जिन हिस्सों पर तालियाँ बजाई जाती हैं,उन्हें 'भरी' या तालियों के स्थान कहते हैं भरी ताल को थाप द्वारा दिखाया जाता है । शुभा मेहता 13th June, 2025