ठेका
तबला या मृदंग के लिए प्राचीन शास्त्रकारों नें भिन्न-भिन्न बोल वैसी ही भाषा में बना दिए, जैसी उन ताल वाद्यों से प्रकट होती है । उन बोलों को जब हम तबला या मृदंग पर बजाते हैं,तब उसे ठेका कहते हैं ।ठेका एक ही आवृति का होता है,जिसमें मात्राएं निश्चित होती हैं । उन्हीं निश्चित मात्राओं के अनुसार गानें -बजानें का नाप होता है ;जैसे कहरवा ताल में आठ मात्राएं होती हैंऔर इसके दो भाग हैं ।प्रत्येक भाग में चार-चार मात्राएं होती हैं । पहली मात्रा पर सम और पाँचवी पर खाली है इसे इस प्रकार से लिखा जाएगा ..... मात्राएं- 1 2 3 4 : 5 6 7 8 ठेका-- धा गे न ति : न क धिं ना ताल चिन्ह × : 0 यह कहरवा ताल का ठेका हुआ। दुगुन --- किसी ठेके को जब दुगुनी लय मे...